साल 2022 का आगाज वर्ल्ड कप हीरो हरभजन सिंह के संन्यास से शुरू हुआ। रिटायरमेंट लेने के बाद वे फिर चर्चा में हैं। इस बार उन्होंने एक चैनल के माध्यम से अपना दर्द जाहिर किया है। उनका कहना है कि उन्हें टीम की कप्तानी का मौका नहीं मिला। वे बतौर कप्तान टीम को ऊंचाइयों तक लेकर जा सकते थे। भज्जी कप्तान रहे हों या नहीं, उनकी बॉलिंग शानदार थी। उन्होंने अपनी फिरकी पर दुनिया के दिग्गज बल्लेबाजों को नचाया। लेकिन करियर के ढलान पर उनके साथ वही हुआ जो कि उनके साथी धाकड़ों के साथ होता आया। गुमनामी में संन्यास। आइए, भारतीय क्रिकेट के कुछ ऐसे ही दिग्गजों की बात करते हैं, जिन्हें सही ढंग से विदाई नहीं मिल सकी।
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2016 में खेला था लास्ट इंटरनेशनल
हरभजन सिंह का संन्यास भले ही गुमनामी में हुआ, लेकिन इस फैक्ट इंडियन टीम की रीढ़ रहे। उन्होंने अपनी स्पिन से कई अहम मैच जितवाए। 2015 के बाद से टीम में इतने नए स्पिनर आए कि भज्जी कहीं गायब से हो गए। उन्होंने अपना लास्ट टेस्ट 12 अगस्त 2015 को श्रीलंका के खिलाफ खेला। लास्ट वनडे 25 अक्टूबर 2015 को साउथ अफ्रीका के खिलाफ हुआ। अंतिम टी-20 इंटरनेशनल भज्जी ने 3 मार्च 2016 को खेला। यूएई के खिलाफ ढाका में हुए मुकाबले के बाद से भज्जी इंटरनेशनल फ्रंट से गायब हैं।
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हरभजन ने 23 साल के करियर में इंडिया को कई मैच जितवाए। उन्होंने विदेशी मैदानों पर भी टीम को जीत का स्वाद चखाया। लेकिन इतने उम्दा करियर के बावजूद जब उनका फॉर्म लड़खड़ाया, तब बोर्ड या सिलेक्शन कमेटी ने उनसे बात करने तक की जरूरत नहीं समझी। हरभजन को एक फेयरवेल मैच खेलाने का विचार तक किसी को नहीं आया।
कीवी बल्लेबाजों को नचाया
भज्जी ने अपना पहला टेस्ट 17 साल की उम्र में खेला। वह मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बेंगलुरु में था। इंडिया तो मैच हार गई, लेकिन टीम में एक युवा ऑफ स्पिनर की एंट्री हो गई।
हरभजन सिंह रिटायरमेंट जरूर ले चुके हैं। लेकिन उनका न्यूजीलैंड के खिलाफ उसी के घर पर परफॉर्मेंस हमेशा यादगार रहेगा। वह मुकाबला 18 मार्च 2009 को था। हैमिल्टन के मैदान पर भारतीय कप्तान धोनी ने पहले गेंदबाजी का फैसला किया। पहली पारी में तेज गेंदबाजों ने अपना कमाल दिखाया। प्लेयिंग इलेवन के इकलौते स्पिनर थे भज्जी। वे कुल 1 ही विकेट ले सके।
इंडिया की पहली पारी में सचिन तेंदुलकर ने 160 रन की पारी खेली। इंडिया ने पहली पारी में 520 रन बनाए। और मेहमान टीम को 241 रन की लीड मिली। न्यूजीलैंड की दूसरी पारी में चला भज्जी का जादू। उन्होंने कुल 63 रन देकर 6 बल्लेबाजों को आउट किया। हरभजन के दमदार प्रदर्शन से मेजबान की दूसरी पारी कुल 279 रन पर ढेर हो गई। इंडिया को फाइनल इनिंग में कुल 39 रन का लक्ष्य मिला। इंडिया ने मैच 10 विकेट से जीता।
हरभजन ने टीम को 42 टेस्ट जितवाए। इनमें से 14 विदेशी मैदानों पर जीते। वे 5 बार प्लेयर ऑफ द मैच भी बने। चार बार वे प्लेयर ऑफ द सीरीज चुने गए।
मुलतान के सुल्तान को भी नहीं मिला सम्मान
सिर्फ हरभजन सिंह का संन्यास ही गुमनामी में नहीं रहा। उनसे पहले पाकिस्तान को उसी के घर में नाकों चने चबवाने वाले वीरेंद्र सहवाग के साथ भी यही सलूक हुआ। सहवाग ने अपना लास्ट इंटरनेशनल मैच 2 मार्च 2013 को खेला। उसके बाद वे टीम से गायब हो गए। दो साल बाद अपने 37वें बर्थडे पर उन्होंने औपचारिक रिटायरमेंट अनाउंस किया।
सहवाग किस कैलिबर के क्रिकेटर थे, यह बताने की जरूरत नहीं। टेस्ट में 300+ का स्कोर हो या वनडे में डबल सेंचुरी। वीरू ने अपने करियर में इन दोनों ऊंचाइयों को छुआ। यह कारनामा करने वाले वे वर्ल्ड के महज दूसरे खिलाड़ी हैं। उनके अलावा सिर्फ क्रिस गेल ने यह उपलब्धि हासिल की।
सहवाग ने जब करियर शुरू किया था, तब सभी का मानना था कि वे जल्दबाजी में खेलते हैं। तूफानी खेलने के चक्कर में वे आउट हो जाते हैं। वे वनडे में भले चल जाएं, लेकिन टेस्ट में नहीं टिक पाएंगे। नजफगढ़ के नवाब ने सभी आलोचकों का मुंह अपने बल्ले से बंद किया। उन्होंने टेस्ट और वनडे दोनों में 8000+ रन बनाए। यह कारनामा करने वाले वे महज तीसरे इंडियन हैं। उनके अलावा सिर्फ सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ ने दोनों फॉर्मेट्स में इतने रन बनाए हैं। प्रेजेंट में सिर्फ विराट कोहली उनके रिकॉर्ड के करीब हैं। वे इस साल टेस्ट में 8 हजारी बन जाएंगे।
इतने बेहतरीन रिकॉर्ड के बावजूद सहवाग ने गुमनामी में रिटायरमेंट लिया। उनके लास्ट मैच और रिटायरमेंट के बीच दो साल का अंतर रहा।
गंभीर को भी मिला यही गम
सहवाग के साथी ओपनर रहे गौतम गंभीर को भी गुमनामी ही मिली। गंभीर उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से हैं जो कि 2007 में टी-20 और 2011 में वनडे वर्ल्ड कप टीम का अहम हिस्सा बने। इसके बावजूद उन्होंने 37 साल की उम्र में रिटायरमेंट लिया।
2007 में टी-20 वर्ल्ड कप विनिंग टीम का हिस्सा रहे गंभीर ने लास्ट टी-20 28 दिसंबर 2012 को खेला। आखिरी वनडे 27 जनवरी 2013 को और टेस्ट 9 नवंबर 2016 को खेला। आखिर ऐसा क्या हुआ कि 2011 वनडे वर्ल्ड कप का हीरो महज दो साल में फ्लॉप हो गया।
गंभीर एक खास रिकॉर्ड अपने नाम रखते हैं। वे लगातार पांच टेस्ट मैचों में सेंचुरी लगाने वाले इकलौते इंडियन और वर्ल्ड के महज चौथे बल्लेबाज हैं। उनके अलावा सिर्फ सर डॉन ब्रेडमैन (6), पाकिस्तान के मोहम्मद यूसुफ (5) और साउथ अफ्रीकी दिग्गज जैक्स कैलिस (5) यह कारनामा कर पाए हैं।
गौती के नाम से मशहूर रहे गंभीर टेस्ट और वनडे दोनों में इंडिया के ओपनिंग बैट्समैन रहे। टेस्ट में बतौर ओपनर उनसे ज्यादा रन सिर्फ सुनील गावस्कर और वीरेंद्र सहवाग के नाम रहे। वनडे की बात करें तो सर्वाधिक रन बनाने के मामले में वे इंडिया के 7वें नंबर के बैट्समैन रहे।
यही नहीं, जनवरी 2011 से दिसंबर 2013 के बीच इंडिया के लिए सर्वाधिक वनडे रन बनाने के मामले में गंभीर 5वें नंबर पर थे। उन्होंने 42 मैचों में 2 सेंचुरी और 3 हाफ सेंचुरी समेत 1558 रन बनाए थे। लेकिन उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। गंभीर ने अपने छोटे से करियर में वह मकाम तो बनाया था कि उन्हें एक फेयरवेल मैच मिले। लेकिन भारतीय क्रिकेट में शायद इसकी प्रथा ही नहीं।
दोष सिर्फ बोर्ड या सिलेक्टर्स का नहीं…
हरभजन सिंह का संन्यास दुखद रहा। भज्जी-वीरू जैसे दिग्गजों को फेयरवेल मैच नहीं मिल सका। इसके पीछे सिर्फ बोर्ड जिम्मेदार नहीं। इन दिग्गजों की भी उतनी ही गलती है। हर खिलाड़ी की एक उम्र होती है। जब वह खेल में धीमा हो जाए, या पुराने फॉर्म में न रहे। ऐसे में उसे खुद अपने संन्यास के बारे में विचार करना चाहिए। वह बोर्ड और सिलेक्टर्स के साथ मिलकर इसकी चर्चा कर सकता है। यह एक अच्छे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट की भी मिसाल हो सकती है। लेकिन खिलाड़ी ताउम्र खेलना चाहते हैं। वे टीम से पहले खुद को आगे रखने लगते हैं। जैसे कि सहवाग के बाहर होने की सबसे बड़ी वजह उनकी नजर का कमजोर होना था। इसी वजह से उनका हैंड-आई कोऑर्डिनेशन खराब होने लगा था। और वे धीरे-धीरे गेम से बाहर हो गए।
विराट कोहली का कप्तानी छोड़ना सभी के लिए शॉकिंग था। लेकिन अगर गेम स्पिरिट में देखा जाए, तो यह सबसे अच्छा डिसिजन रहा। वे कप्तानी में फ्लॉप नहीं थे। लेकिन टीम को बड़े मौकों पर सफल नहीं कर पा रहे थे। पहले वनडे (2019) और फिर टी-20 वर्ल्ड कप में फ्लॉप होने के बाद उनका कप्तानी से हटना न सिर्फ टीम, बल्कि उनके पर्सनल करियर के लिए शानदार हो सकता है।
ऐसा ही उदाहरण महेंद्र सिंह धोनी ने भी पेश किया। पहले उन्होंने कप्तानी छोड़ी और फिर पर्सनल करियर से रिटायर किया। अगर हम इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों पर नजर डालें, तो वहां भी खिलाड़ी अपनी लिमिट्स समझकर ही रिटायर होते हैं। यह एक अच्छी मिसाल है।
खिलाड़ी चाहे समझें या नहीं, लेकिन हरभजन और वीरू जैसे दिग्गजों का गुमनामी में रिटायरमेंट फैन्स के लिए काफी दुखद है।
आंकड़ों का सोर्स – क्रिकइंफो